Sunday, June 7, 2020

परमेश्वर कबीर जी का प्राकट्य दिवस


5 जून 2020 : परमेश्वर कबीर जी का प्राकट्य दिवस



                 परमेश्वर कबीर जी, जिन्हें वर्तमान समाज में बहुत से व्यक्ति संत कबीर जी के नाम से भी जानते हैं और साथ ही यह भी मानते हैं कि कबीर जी को नीरू - नीमा नामक जुलाहे दंपत्ति ने काशी के लहरतारा तालाब पर प्राप्त किया था। परमेश्वर कबीर के प्रकट होने से लेकर वापस सतलोक गमन तक की सम्पूर्ण लीला में बहुत सारे रहस्य हैं। जिनसे अनजान व्यक्ति यह मानने को तैयार नहीं कि काशी के संत कबीर जी ही पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी हैं।

                     जी हां प्रकट होने का आशय सर्वोच्च स्थान से निम्न स्थान पर उतारना होता है, यह शब्द मुुख्यतः उन उत्तम आत्माओं के लिए प्रयुक्त होता है, जो धरती पर आकर सर्व संसार के लिए कुछ अद्भुत कार्य करते हैं। ऐसी आत्माओं को समाज के व्यक्ति परमात्मा या परमात्मा का भेजा हुआ दूत मानते हैं।

                     बहुत से व्यक्तियों के मन में ये प्रश्न होते हैं कि संत कबीर जी तो कलियुग में आए हैं, जो कि राम व कृष्ण के अवतार से बहुत बाद की घटना है तो आखिर कबीर जी पूर्ण परमात्मा कैसे हो सकते हैं, तो आइए जानते हैं उन्हीं की वाणी से उनका रहस्य...

"सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।
द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया।।"

"चारों युगों में हम पुकारैं, कूक कहैं हम हेल रे।
हीरे मानिक मोती बरसें, ये जग चुगता ढेल रे।।"

                    उपरोक्त वाणी से सिद्ध है कि कबीर परमेश्वर ही अविनाशी परमात्मा है। यही अजरो-अमर है। यही परमात्मा चारों युगों में स्वयं अतिथि रूप में कुछ समय के लिए इस संसार में आकर अपना सतभक्ति मार्ग देते हैं। जिसके दौरान परमात्मा बहुत सी लीलाएं करते हैं। उपरोक्त वाणी में यह भी बताया गया है कि परमात्मा सतयुग में सतसुकृत के नाम से, त्रेतायुग में मुनींद्र नाम से, द्वापरयुग में करुणामय नाम से तथा कलियुग में कबीर परमेश्वर के नाम से आए हैं।



                   आइए आज हम जानते हैं कि कबीर परमात्मा ने कलियुग में प्रकट होकर ऐसी क्या लीला की, जिससे साबित होगा कि वही कबीर परमात्मा हैं।


                   कलयुग में परमेश्वर कबीर जी भारत के काशी शहर(वर्तमान वाराणसी) के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) को भोर(सूर्य निकलने से पहले का समय) के समय कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे। रोज की तरह आज भी नीरू, नीमा नामक पति-पत्नी लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। चूंकि उनकी कोई संतान नहीं थी तो नीमा रास्ते में भगवान शंकर से रोते हुए प्रार्थना कर रही थी कि, "हे भगवान! आप तो समर्थ हैं कम से कम हमें एक बालक ही दे दो।" ऐसे ही विलाप करते करते दोनों तालाब पर पहुंचे। बारी बारी स्नान करते करते हल्का उजाला सा हो गया, और नीरू के स्नान करते समय नीमा को कमल के फूल पर एक बालक सा दिखा तो नीमा ने ज़ोर से नीरू को आवाज़ दी कि कमल पर बालक है उसे उठा लो। देखने पर पता चला कि एक ऐसा मनमोहक बालक है, जिसने एक पैर अपने मुख में ले रखा था तथा दूसरे पैर को हिला रहा था। बालक(परमेश्वर कबीर जी) को लेकर नीरू तथा नीमा अपने घर पर आए। जिस भी नर व नारी ने नवजात शिशु रूप में परमेश्वर कबीर जी को देखा वह परमात्मा के एक मनमोहक रूप को देखता ही रह गया। बालक को देखने के पश्चात उसके चेहरे से दृष्टि हटाने को दिल नहीं करता, आत्मा अपने आप खिंची जाती है। इसके पश्चात काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरान शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। काजियों में से मुख्य काजी ने क़ुरान शरीफ़ पुस्तक को कही से खोला। उस पृष्ठ पर प्रथम पंक्ति में प्रथम नाम “कबीरन्” लिखा था। काजियों ने सोचा “कबीर” नाम का अर्थ बड़ा होता हैं। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखें थे अन्य लेख नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। इसके पश्चात  परमेश्वर कबीर जी शिशु रूप में काजियों से बोलते हैं कि,"काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो।" काज़ी तो चले गए लेकिन परमात्मा का नाम कबीर ही रखा गया। इसके पश्चात नीमा जी ने बालक को जब दूध पिलाना चाहा तो बालक दूध ना पीता था। इसी प्रकार धीरे धीरे 25 दिन बीत गए। अब नीरू और नीमा बहुत परेशान हो गए। पुनः नीमा विलाप करने लगी और शंकर भगवान को याद करके बोलने लगी कि, "हे परमात्मा! अगर इस बालक को कुछ हुआ तो मैं भी मर जाऊंगी।"  तभी भगवान शंकर जी एक ब्राह्मण का रूप बना कर नीरू की झोपड़ी के सामने आए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा, तो नीमा ने सर्वकथा बतायी। साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा कि, "बालक को मेरे पास लेकर आओ।" अब बालक का रूप धारण किए हुए परमेश्वर कबीर जी ने शंकर जी से कहा, " आप इन्हें कहो एक कुंवारी गाय लाऐं। आप उस कुंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुंवारी गाय का दूध पीऊंगा और उस दूध से मेरी परवरिश होगी।" शंकर जी ने नीमा नीरू से बिल्कुल यही बात कह दी। नीरू कुंवारी गाय तथा कुम्हार के घर से एक छोटा घड़ा भी ले आया। अब परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार शंकर जी ने उस कुंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा। तुरंत गाय के थन लम्बे हो गए तथा थनों से दूध की धार बह गई। अब जैसे ही वह घड़ा पात्र भर गया स्वयं ही थनों से दूध निकलना भी बंद हो गया। और उसी दूध से बालक कबीर परमेश्वर जी की परवरिश हुई।



परमात्मा सदैव ऐसी लीला करते हैं प्रमाण के लिए देखिए ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 जिसमें वर्णित है कि,
" मंत्र का प्रमाण :

अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनव: शिशुम् सोममिन्द्राय पातवे।।9।।

हिंदी अनुवाद :

"जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुआरी गाय से होता है।""



                  इस प्रकार की अन्य बहुत सी लीलाएं हैं जो परमात्मा के द्वारा इस काल लोक में किया जाता है। इन लीलाओं को विस्तार से जानने के लिए अवश्य देखिए संत रामपाल जी के अमृत प्रवचन निम्नलिखित समयानुसार निम्नलिखित चैनलों पर...

(1)  सुबह 06:00 बजे से Nepal 1 TV पर
(2) दोपहर 02:00 बजे से Shraddha MH One पर
(3) शाम 07:30 बजे से Sadhna चैनल पर

                  यह सारी लीला परमात्मा अपनी हंस आत्माओं को काल के जाल से छुड़ा कर सतलोक वापस ले जाने के लिए करते हैं। जबकि काल के जाल में हम स्वेच्छा से फंसे हैं और अब यहां कष्टमई जीवन व्यतीत करते हैं। जिससे बचाने के लिए परमात्मा सशरीर यहां आते हैं और अपने ज्ञान का प्रचार करते हैं। जिससे हम जीवन का मूल लक्ष्य समझ सकें और मोक्ष प्राप्त करके वापस अपने निज धम सतलोक को जा सकें।

                   आज के इस समय में  सम्पूर्ण विश्व में सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण सतगुरु है जो कि कबीर परमेश्वर जी तक सभी आत्माओं को पहुंचा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़िए पुस्तक👉 https://www.jagatgururampalji.org/en/publications


                 यदि आप संत रामपाल जी का ज्ञान समझ चुके हैं और आप अगर नाम दीक्षा लेना चाहते हैं तो ये सुविधा आपको बिलकुल मुफ्त मिलेगी। सिर्फ घर बैठे आपको एक निःशुल्क नाम दीक्षा फॉर्म👉 http://bit.ly/NamDiksha भरना होगा।


अधिक जानकारी के लिए आप www.jagatgururampalji.org पर विजिट कर सकते हैं या निम्नलिखित नंबरों पर कॉल कर सकते हैं...



Monday, May 25, 2020

Liberation or "Moksha" means getting "freedom" from the cycle of birth & death.("ईद मुबारक")

"ईद मुबारक"(On the Occation of Eid)

Is Moksha or Nirvana freedom from the cycle of birth & death or is it the freedom from the fear of cycle of birth & death?
First a fall we have to understand , what is moksha ??

Liberation or Moksha means getting freedom from the cycle of birth & death.

Moksha or salvation is freedom from the cycle of birth and death as well as the fear of cycle of birth and death because both of these are interrelated.





Then understand Why have we required this ??

The sole aim of doing worship is to attain liberation or Moksha.

The main aim of human life is to get "Moksha" . Moksha can only be achieved once a soul gets initiated by a True Master. Hence, the sole aim of getting initiated is to attain Moksha.

Readers should take note that "Good Health", "Prosperity", and "Happiness " is a by-product of this true worship. Naam should not be taken with a primary aim to achieve these by-products. The aim should be salvation.

If someone takes naam with the primary aim of achieving wordly pleasures or getting rid of a misery or distress or a disease,it does not work quickly. One needs to gain knowledge and develop faith before these benefits can be obtained.

Provided a disciple does true worship as ordained by Sant Rampal Ji and follows the rules with a primary aim of achieving salvation, good health and prosperity automatically occur.



How are we initiating this ?? Or how we are getting this ???

Then let's understand this in deep..

Initiation is a process whereby a person is granted "naam" (mantras) by a True Master Or Supreme Saint. It is also called "Naam Diksha" .



Today great Saint Rampal Ji is the only complete Guru on this earth who is providing a true way of worship which is scriptures based. Readers are advised to take His refuge. Identify God and get their well being done.



For more information must watch "Sadhana Channel " at 7:30 pm to 8:30 pm

AND Download the book " The Way of Living " in the form of PDF (English/Hindi)..

Wednesday, May 6, 2020

अन्नदान महादान

 भूखे को भोजन प्यासे को पानी



भूखे व्यक्ति के लिए अन्न देव की वह महिमा है जिसकी तुलना हीरा से भी नहीं की जा सकती।

कोरोना महामारी के संकट में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी बढ़चढ़ कर, कर रहे हैं अन्न का दान।




🌺🌿   जो अपने सो और के, एकै पीड़ पिछान।
जैसे हमें खाना नहीं मिलने पर पीड़ा होती है वैसे ही जो गरीब असहाय लोग हैं उन्हें भोजन नहीं मिलने पर पीड़ा होती है। ऐसी परिस्थिति में संत रामपाल जी महाराज के शिष्य ज़रूरतमंदों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं।

🌼🌿अन्न जल साहेब रूप है, क्षुध्या तृषा जाये।
चारों युग प्रवान है, आत्म भोग लगाए।
अन्न जल को परमात्मा का रूप बताया है। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य वर्तमान परिस्थितियों में असहाय लोगों की मदद कर रहे हैं, उन तक भोजन पहुंचा रहे हैं।

🌹🌿हमें आज समझना होगा सब अपने भाई बहन हैं। इसलिए आपके आसपास कोई भूखा ना सोए।
इस बात को ध्यान में रखते हुए संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से बहुत से सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को भंडारे के समान द्वारा मदद की जा रही है।

🥀🌿संतों द्वारा सबसे बड़ा पुण्य अन्न दान माना गया है।
इसलिए इस कोरोना महामारी के संकट काल में संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से जगह-जगह पर भोजन बांटने की व्यवस्था की जा रही है।

🌼🌿संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों द्वारा शुरू एक और अभियान
देश के कोने कोने में भूखे लोगों को भोजन देने का कार्य शुरू।



🌷🌿मानवता की सच्ची सेवा में हर समय आगे रहने वाले संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से उनके अनुयायी इस लॉकडाउन की परिस्थिति में ज़रूरतमंदों के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं।

🏵️🌿गरीबदास जी की वाणी है
रोटी तैमूरलंग कूं दीन्ही, तातैं सात बादशाही लीन्ही।
एक साधु को रोटी खिलाने भर से तैमूर लंग को सात पीढ़ी का राज मिला।
कोरोना के इस संकटकाल में
 संत रामपाल जी महाराज के भक्त भी कर रहे हैं अन्नदान में भरपूर सहयोग।

💐🌿संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी कोरोना महामारी के संकट के दौरान आगे आये। ज़रूरतमंदों के लिए की भंडारे की व्यवस्था। समाज को भी ऐसे वक्त में अपना सहयोग देना चाहिए।

🌸🌿संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से उनके अनुयायियों ने किया अन्नदान। संत रामपाल जी महाराज के समर्थकों ने भूखों के लिए रोहतक में की भंडारे की व्यवस्था।

🌻🌿संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी कर रहे हैं हर जरूरतमंदों की मदद। संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी लॉकडाउन में गरीब लोगों को भोजन देने के लिए आगे आ रहे हैं।

🌺🌿चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी न घटयो नीर।
दान दिए धन घटे नहीं, यों कह रहे साहेब कबीर।।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि दान करने से कभी धन नहीं घटता। इसलिए  उनके अनुयायी परमार्थ के काम में आगे रहते हैं।

🌼🌿संत रामपाल जी के अनुयायियों द्वारा इस विकट परस्थिति में
जगह जगह भोजन की व्यवस्था की जा रही है।
परमेश्वर कबीर जी बताते हैं
कह कबीर पुकार के दो बात लिख लेय।
एक साहिब की बंदगी और भूखों को भोजन दे।

🌺🌿धर्म तो धसकै (नाश)नहीं, धसकै तीनों लोक। खैरायत में खैर है, कीजै आत्म पोख।।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं धर्म का कभी नाश नहीं होता। इसलिए उनके अनुयायी ज़रूरतमंदों तक भोजन भेज रहे हैं।

🏵️🌿जिस भंडारे से अन्न निकसा सो भंडारा भरपूर, काल कंटक दूर। भूखों को भोजन खिलाने से कई गुना लाभ मिलता है। कष्ट भी दूर होते हैं।
संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी इसे भली-भांति समझते हैं।



🌼🌿मानवता का परिचय देते हुए संत रामपाल जी महाराज के समर्थक भूखे लोगों को खाना खिलाकर उनका दुख कम करने का प्रयास करके महा परोपकार का कार्य कर रहे हैं।
रोटी माता रोटी पिता, रोटी काटें सकल बिथा।
दास गरीब कहैं दरवेसा, रोटी बाटो सदा हमेशा।।

🌻🌿लॉकडाउन के दौरान कोई भी भूखा नहीं रहेगा। मानवता की अद्भुत मिसाल कायम कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में उनके समर्थक कर रहे हैं मानव सेवा, जिससे कोई भी भूखा न रहे।

🌹🌿नामदेव जी ने बिट्ठल भगवान रूप पूर्ण परमात्मा को रोटी खिलाई थी। जिसकी वजह से पूर्ण परमेश्वर ने नामदेव जी की पूरे गांव में महिमा बनाई।
संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों का मानना है जो व्यक्ति भूखों को अन्न खिलाता है परमात्मा उस भक्त के साथ सदैव रहता है।

🏵️🌿धन्ना भक्त कुं दिया बीज, जाका खेत निपाया रीझ।
एक धन्ना नामक भक्त ने अपने खेत में ज्वार बोने के बजाए, उन बीजों को भूखे साधुओं को खिला दिया था, इसी कारण से परमात्मा ने उनका सूखा खेत हरा कर दिया जिसमें उन्होंने कंकर बोई थी।
देते को हरि देत है,
संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों का मानना है कि जो व्यक्ति भूखों को भोजन कराता है परमात्मा उसकी ऐसे मदद करता है।

💐🌿भूखे की भूख मिटाने का बहुत पुण्य होता है।
संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों ने कोरोना संकट में जरूरतमंदों की मदद को बढ़ाए हाथ। भूखों को अन्न खिलाने से आध्यात्मिक व भौतिक दोनों लाभ मिलते हैं।
संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी कर रहे हैं हर जरूरतमंदों की मदद।

🌼🌿 संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संग में बताते हैं भूखे को भोजन खिलाने का बहुत बड़ा धर्म होता है। तैमूरलंग ने एक रोटी दान की और परमात्मा ने उसे 7 पीढ़ी का राज्य दे दिया था।

🌹🌿संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों ने कहा कि भूखों को भोजन खिलाने का बहुत पुण्य होता है।





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संत रामपाल जी के इस मुहिम से जुड़ने के लिए आपको संत रामपाल जी महाराज जी के द्वारा लिखी पुस्तकें पढ़ने के बाद उनका ज्ञान समझ के उनसे नाम दीक्षा लेना होगा।



Friday, April 24, 2020

Creation of Nature

Creation of Nature




               We all know that, “There is any Supreme Power in this Universe, who is running this Nature, whether we know Him or not...” Even It is also said that There is only one God(Divine), who is created this universe, but still the people of every community and every religion worship different Gods.

               Many people ask the question, "Who is that Supreme Power, who is running this Nature and How the Nature is created and by whom???

               So, Here the answer of these question that is proved from the true holy scriptures of every religion (as Vedas of Hindus, Quran-E-Sharif of Muslims, Bible of Christian and Shri Guru Granth Sahib of Sikh etc.) by Saint Rampal Ji Maharaj Ji…

               This Nature(Universe) is created by Supreme Power named God Kabir. In the Nature's Creation, SatPurush – Master (Lord) of Satlok, Alakh Purush - Master (Lord) of Alakh lok, Agam Purush - Master (Lord) of Agam lok, and Anami Purush -Master (Lord) of Anami lok is only one Purna Brahm, who is the Eternal (immortal) God in reality; who by acquiring different-different forms lives in all of His four loks, and who is the controller of infinite brahmands…

There are some Evidence of Nature’s Creation from every religion holy books :-



In Hindus Holy Book Rigved -


  1. Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 1
  2. Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 2
  3. Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 3
  4. Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 4
  5. Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 5
  6. Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 15
  7. Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 16

In Hindus Holy Book Atharvaved –


  1. Atharvaved Kand 4 Anuvak 1 Mantra 1
  2. Atharvaved Kand 4 Anuvak 1 Mantra 2
  3. Atharvaved Kand 4 Anuvak 1 Mantra 3
  4. Atharvaved Kand 4 Anuvak 1 Mantra 4
  5. Atharvaved Kand 4 Anuvak 1 Mantra 5
  6. Atharvaved Kand 4 Anuvak 1 Mantra 6
  7. Atharvaved Kand 4 Anuvak 1 Mantra 7

In Hindus Holy Book Shrimad Bhagvat Geeta Ji -


  1. Geeta Ji Chapter 15 Shlok 1
  2. Geeta Ji Chapter 15 Shlok 2
  3. Geeta Ji Chapter 15 Shlok 3
  4. Geeta Ji Chapter 15 Shlok 4
  5. Geeta Ji Chapter 15 Shlok 16

In Christian’s Holy Bible –


  1. Bible Genesis, on page no. 2, A. 1:20 - 2:5



In Muslim’s Holy Quran-E-Sharif –


  1. Quran-E-Sharif Surat Furqani 25, Aayat no. 52
  2. Quran-E-Sharif Surat Furqani 25, Aayat no. 58
  3. Quran-E-Sharif Surat Furqani 25, Aayat no. 59


In Sikh’s Holy Book Shri Guru Granth Sahib Ji –


  1. Shri Nanak Ji's sacred speech, Mehla 1, Raag Bilaavalu, Ansh 1 (Guru Granth Sahib, Page no. 839)
  2. Raag Maaru (Ansh) sacred speech, Mehla 1 (Guru Granth, Page no.1037)
  3. Shri Guru Granth Sahib, page no. 929, sacred speech of Shri Nanak Sahib Ji, Raag Ramkali, Mehla 1, Dakhni Omkaar
  4. Aanshik sacred speech, Mehla 1 (Shri Guru Granth, page no. 359-360)
  5. Amrit Vaani, Raag Aasa, Mehla 1 (Shri Guru Granth, page no. 420)
  6. Shri Guru Granth Sahib, page no.843-844
  7. Shri Guru Granth Sahib, Page no. 721, Raag Tilang, Mehla 1
  8. Shri Guru Granth Sahib, Page no. 24, Raag Siri, Mehla 1



               There are given some important evidence in the above description, In which it is clearly describe that How and Who created this Universe…

               To know these proofs briefly, Must Read The Books written by Saint Rampal Ji, In which it is clearly described that Where We have come from and Where We have to Go? Why We are sad here?



Download Books from this wesite…

https://www.jagatgururampalji.org/en/publications

               If you have already read this book and if you want to get your own salvation, then you and your family too can get initiation by Saint Rampal Ji Maharaj Ji. This process has been easier at the time of this Lockdown, Just touch on the link given below and fill the initiation from without any cost…

http://bit.ly/NamDiksha

For more information You can watch the all satsang of Saint Rampal Ji on the time that is given below…


  1. On Nepal 1 TV at 06:00 AM
  2. On Shraddha MH One Channel at 02:00 PM
  3. On Sarthi Channel at 06:30 PM
  4. On Sadhna Channel at 07:30 PM
  5. On Ishwar Channel at 08:30 PM


You can also visit on our website www.jagatgururampalji.org ...

Tuesday, April 21, 2020

The Beautiful Spiritual Story

राजपूत राजा के वैराग्य की कथा


               प्राचीन काल से ही भारत राजा-महाराजा एवं ऋषि-मुनियों का देश रहा है। इसकी अद्भुत संस्कृति एवं सभ्यताओं के कारण ही इसे विश्वगुरु या जगतगुरु भारत कहा जाता रहा है। यह कथा भी हमारे देश के एक महान राजा की है, जिन्होंने एक सच्चा गुरु बनाकर पूर्ण परमात्मा की भक्ति किया।  

               यह कथा राजस्थान के गीगनौर(वर्तमान नाम नागौर) नामक शहर की है। जहाँ राजपूत राजा पीपा ठाकुर राज्य करता था। उसकी तीन रानियाँ थी। पटरानी (मुख्य पत्नी) का नाम सीता था। 

              उसी काल में काशी नगर (उत्तर प्रदेश) में आचार्य रामानंद जी रहते थे। वह तत्काल समय के सुप्रसिद्ध संत थे। वह कबीर परमेश्वर जी की लीला तथा यथार्थ ज्ञान जानकर उनसे प्राप्त ज्ञान का प्रचार किया करते थे। वे मण्डली बनाकर चलते थे। एक बार स्वामी रामानंद जी परमात्मा का ज्ञान प्रचार करते करते गीगनौर शहर में चले गए। राजा को पता चला कि स्वामी रामानंद आचार्य जी आए हैं। राजा पीपा जी देवी दुर्गा के परम भक्त थे। माता को ही सर्वोच्च शक्ति मानते थे। राज्य में सुख माता जी के आशीर्वाद से ही मानते थे। राजा को पता चला कि स्वामी रामानंद जी माता दुर्गा से ऊपर के पुर्ण परमात्मा के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि माता दुर्गा की शक्ति से जन्म-मरण तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीरों में कष्ट उठाना समाप्त नहीं हो सकता। राजा को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा।

               राजा पीपा जी ने स्वामी रामानंद जी को अपने महल में बुलावाया -

राजा पीपा जी - "आप कहते हो कि दुर्गा देवी जी से ऊपर अन्य परम प्रभु है। माता की पूजा से जन्म-मरण, चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों में भ्रमण सदा बना रहेगा। जन्म-मरण तथा चौरासी लाख प्रकार की योनियों वाला कष्ट पूर्ण परमात्मा की भक्ति के बिना समाप्त नहीं हो सकता। राजा ने आगे बताया कि मैं प्रत्येक अमावस्या को माता का जागरण करवाता हूँ, भण्डारा करता हूँ। माता मुझे प्रत्यक्ष दर्शन देती है। मुझसे बातें करती है।"

स्वामी रामानंद जी - "आप माता से ही स्पष्ट कर लेना। हम छः महीने के पश्चात् फिर इस ओर आऐंगे, तब आप से भी मिलेंगे।"

इतना कह कर स्वामी जी चले गए।

                अमावस्या आ गई। हमेशा की तरह इस बार भी राजा ने जागरण कराया। माता ने दर्शन दिए। तब  राजा ने माता प्रश्न किया - 

राजा पीपा जी - "हे माता! आप मेरा जन्म-मरण तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीरों में कष्ट उठाना समाप्त कर दें।"

 श्री देवी दुर्गा जी - "राजन! बेटा तू तेरे राज्य में सुख माँग ले। राज्य विस्तार माँग ले। वह सब कर दूँगी, परंतु जन्म-मरण तथा चौरासी लाख वाला कष्ट समाप्त करना मेरे बस से बाहर है।"

इतना कह कर माता अंतर्ध्यान हो गई। 

               कहते हैं ना कि "यदि किसी को प्यास लगी हो, तो वह जल स्त्रोत(कुँआ, नदी, झरना इत्यादि) के खोज में लग ही जाता है।" इसी प्रकार पीपा ठाकुर बेचैन हो गया कि, "यदि जन्म-मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति का क्या लाभ? स्वामी जी कब आऐंगे? छः महीने तो बहुत लंबा समय है।"

यह समय राजा का व्यतीत नहीं हो रहा था। अन्ततः राजा पीपा से रहा नहीं गया और वह स्वयं हाथी पर सवार होकर स्वामी रामानन्द जी से मिलने के लिए काशी उनके आश्रम में चला गया। 

राजा ने द्वार पर खड़े द्वारपाल से कहा कि, "जाओ स्वामी जी से कहो कि पीपा राजा मिलने आया है।"

द्वारपाल ने ऐसा ही किया और अन्दर जाकर स्वामी जी से पूरा वृत्तान्त बताया।

स्वामी जी ने कहा कि, "मैं राजाओं से नहीं मिलता, भक्त-दासों से मिलता हूँ।

द्वारपाल ने आकर राजा को स्वामी जी का उत्तर राजा को बता दिया।

               कहते हैं ना "समझदार को इशारा काफी होता है।" राजा को जैसे ही स्वामी जी का उत्तर मिला तो उसी समय राजा अपना सब कुछ(हाथी, सोने का मुकुट आदि) दान करके आश्रम आया और कहा कि, "एक पापी
दास गीगनौर से स्वामी जी से मिलने आया है।" स्वामी जी बहुत प्रसन्न हुए। 

पीपा ने कहा - "मैं अब आपके पास ही जीवन बिताऊँगा।"

स्वामी जी ने कहा - "आप अपने घर जाओ, मैं शीघ्र आऊँगा। घर से आपको ठीक से वैरागी बनाकर लाऊँगा।"

               स्वामी जी को पता था कि अगर राजा यहाँ रुके तो कुछ दिन बाद रानी आएगी और यहाँ पर हाहाकार मचाएगी। इसलिए उनके सामने ही सन्यास देना उचित समझा। स्वामी रामानंद जी एक महीने के पश्चात् ही राजा के पास पहुँच गए। राजा पीपा ने स्वामी जी को गुरू धारण किया। राज्य त्यागकर उनके साथ काशी चलने का आग्रह किया। राजा के साथ तीनों रानियों ने भी घर त्यागकर सन्यास लेने को कहा। राजा को चिंता
हुई। 

राजा ने यह बात गुरू जी को बताया कि, "ये अब तो उमंग में भरी हैं, परंतु रूखा-सूखा खाना, धरती पर
सोना, अन्य समस्याओ को झेल न सकेंगी। मेरी भक्ति में भी बाधा करेंगी।

स्वामी रामानंद ने कहा कि, "मैं इस समस्या का समाधान करता हूँ।

स्वामी जी राजा के सम्मुख रानियों से कहा कि, "तीनों रानी अपने-अपने गहने त्याग कर चलें।

इतना सुनते ही सीता ने तो अपने आभूषण त्याग दिये। दो ने कहा कि हम आभूषण नहीं त्याग सकती। 

राजा ने पुनः कहा कि, "सीता भी तो बाधा बनेगी।"

स्वामी जी ने कहा कि, "सीता! आपको निर्वस्त्र होकर हमारे साथ रहना होगा।"

सीता ने कहा, "स्वामी जी! अभी वस्त्रा उतार देती हूँ।" यह कहकर कपड़ों के बटन खोलने लगी। 

स्वामी रामानंद जी ने कहा कि, "बेटी! बस कर। ये तेरी परीक्षा थी, तू सफल हुई।"

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए स्वामी जी ने कहा कि, "पीपा जी! आप सीता को साथ ले लो। यह आपकी साधना में कोई बाधा नहीं करेगी।"

               उपरोक्त विधि से स्वामी जी पीपा जी तथा सीता जी को साथ लेकर आए। दोनों ने काशी में रहकर भक्ति की। जैसा मिला, वैसा खाया। जैसा वस्त्रा मिला, वैसा पहना और श्रद्धा से भक्ति करने लगे।


⇒   पीपा-सीता सात दिन दरिया में रहे और फिर बाहर आए -

               भक्त पीपा और सीता सत्संग में सुना करते कि, "भगवान श्री कृष्ण जी की द्वारिका
नगरी समन्दर में समा गई थी। सब महल भी समुद्र में आज भी विद्यमान हैं। बड़ी सुंदर
नगरी थी। भगवान श्री कृष्ण जी के स्वर्ग जाने के कुछ समय उपरांत समुद्र ने उस पवित्रा
नगरी को अपने अंदर समा लिया था।"

               एक दिन पीपा तथा सीता जी गंगा दरिया के किनारे काशी से लगभग चार-पाँच किमी. दूर चले गए। वहाँ एक द्वारिका नाम का आश्रम था। आश्रम से कुछ दूर एक वृक्ष के नीचे एक पाली बैठा था। उसके पास उसी वृक्ष के नीचे बैठकर दोनों चर्चा करने लगे कि भगवान कृष्ण जी की द्वारिका जल में है। पानी के अंदर
है। पता नहीं कहाँ पर है? कोई सही स्थान बता दे तो हम भगवान के दर्शन कर लें। 

पाली ने सब बातें सुनी और बोला कि, "कौन-सी नगरी की बातें कर रहे हो?

पीपा-सीता कहा कि, "द्वारिका की।

पाली ने कहा, "वह सामने द्वारिका आश्रम है।"

पीपा-सीता ने कहा, "यह नहीं, जिसमें भगवान कृष्ण जी तथा उनकी पत्नी व ग्वाल-गोपियाँ रहती थी।

पाली ने कहा, "अरे! वह नगरी तो इसी दरिया के जल में है। यहाँ से 100 फुट आगे जाओ। वहाँ नीचे जल में द्वारिका नगरी है।"

               संत भोले तथा विश्वासी होते हैं। स्वामी रामानंद जी प्रचार के लिए 15 दिन के लिए आश्रम से बाहर गए थे। दोनों पीपा तथा सीता ने विचार किया कि जब तक गुरू जी प्रचार से लौटेंगे, तब तक हम भगवान की द्वारिका देख आते हैं। दोनों की एक राय बन गई। उठकर उस स्थान पर जाकर दरिया में छलाँग लगा दी। आसपास खेतों में किसान काम कर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक स्त्री तथा एक पुरुष दरिया में कूद गए हैं। और आत्महत्या कर ली है। सब दौड़कर दरिया के किनारे आए। 

 किसानों ने पाली से पूछा कि, "क्या कारण हुआ? ये दोनों मर गए, आत्महत्या क्यों कर ली?"

पाली ने सब बात बताई और कहा कि, "मैंने तो मजाक किया था कि दरिया के अंदर भगवान की द्वारिका नगरी है। इन्होंने दरिया में द्वारिका देखने के लिए प्रवेश ही कर दिया। छलांग लगा दी।

बड़ी आयु के किसानों ने कहा कि, "आपने गलत किया, आपको पाप लगेगा। भक्त तो बहुत सीधे-साधे होते हैं।"

               पुनः सभी अपने-अपने काम में लग गए। यह बात आसपास गाँव तथा काशी में आग की तरह फैल गई। काशी के व्यक्ति जानते थे कि, "वे राजा-रानी थे, मर गए।"

               परमात्मा ने भक्तों का शुद्ध हृदय देखकर उस दरिया में द्वारिका की रचना कर दी। श्री कृष्ण तथा रूकमणि आदि-आदि सब रानियाँ, ग्वाल, बाल, गोपियाँ सब उपस्थित थे। भगवान श्री कृष्ण रूप में विद्यमान थे। सात दिन तक दोनों द्वारिका में रहे। चलते समय श्री कृष्ण रूप में विराजमान परमात्मा ने अपनी ऊँगली से
अपनी अंगूठी (छाप) निकालकर भक्त पीपा जी की ऊँगली में डाल दी जिस पर कृष्ण लिखा था। सातवें दिन उसी समय दिन के लगभग 11 बजे दरिया से उसी स्थान से निकले। कपड़े सूखे थे। दोनों दरिया किनारे खड़े होकर चर्चा करने लगे कि अब कई दिन यहाँ दिल नहीं लगेगा। 

               खेतों में कार्य कर रहे किसानों ने देखा कि ये तो वही भक्त-भक्तनी हैं जिन्होंने दरिया में छलाँग लगाई थी। आसपास के वे ही किसान फिर से उनके पास दौड़े-दौड़े आए और कहने लगे कि आप तो दरिया में डूब गए थे। जिन्दा कैसे बचे हो? सातवें दिन बाहर आए हो, कैसे जीवित रहे? 
पीपा-सीता ने बताया कि, "हम भगवान श्री कृष्ण जी के पास द्वारिका में रहे थे। उनके साथ खाना खाया। रूकमणि जी ने अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाया। वे बहुत अच्छी हैं। भगवान श्री कृष्ण भी बहुत अच्छे हैं। देखो! भगवान ने छाप (अंगूठी) दी है। इस पर उनका नाम लिखा है।

               यह सब बातें सुनकर सब आश्चर्य कर रहे थे। यह बात भी आसपास के क्षेत्रा तथा काशी में फैल गई। सब उनको देखने तथा भगवान द्वारा दी गई छाप को देखने, उसको मस्तिक से लगाने आने लगे। स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में मेला-सा लग गया। स्वामी जी भी उसी दिन प्रचार से लौटे थे। उन्होंने यह समाचार सुना तो हैरान थे। छाप देखकर तो सब कोई विश्वास करता था। वैसी छाप (अंगूठी) पृथ्वी पर नहीं थी। उस अंगूठी को एक पुराने श्री विष्णु के मंदिर में रखा गया। कुछ साधु कहते हैं कि, "वह अंगूठी वर्तमान में भी उस मंदिर में रखी है।"


संत गरीबदास जी ने पीपा-सीता जी के बारे में वर्णन करते हुए कहा है कि -


        पीपा को परचा हुआ, मिले भक्त-भगवान।                                               सीता सुधि साबुत रहीं, द्वारामति निधान॥


भावार्थ -      पीपा जी को परचा (परिचय अर्थात् चमत्कार) हुआ। भगवान तथा भक्त मिले, आपस में चर्चा हुई। सीता सुधि (सीता सहित) साबुत (सुरक्षित) रहे। द्वारामति (द्वारिका नगरी) निधान यानि वास्तव में अर्थात् यह बात सत्य है।


               ऐसे ही बहुत सी सत्य कथाएं हैं भारत में जो बहुतों ने कभी नहीं सुनी होंगी। ऐसे अद्भुत एवं अमर कथाएं सुनने के लिए अवश्य देखें व सुनें संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन निम्नलिखित समयानुसार इन चैनलों पर...


  1. सुबह 06:00 बजे से नेपाल 1 टी.वी. चैनल पर
  2. दोपहर 02:00 बजे से श्रद्धा एम एच वन चैनल पर
  3. शाम 06:30 बजे से सारथी चैनल पर
  4. शाम 07:30 बजे से साधना चैनल पर
  5. रात 08:30 बजे से ईश्वर चैनल पर

Monday, April 13, 2020

The Corona Virus

The Corona Virus is spreading in all over world after China. What precautions should people take to avoid the corona virus spreading???

We all know that more than 185 countries worldwide have come under the grip of the Corona virus, which started in Wuhan, China. India is also one of the infected countries. Currently, people in India are also frightened by the corona virus.

Some very important things to avoid Corona Virus ...

1. Clean the things that are being used daily in your home and every person uses them. Such as - chair, table, switch, door and handle are used by everyone in the house, it must be sanitized.

2. Clean your hands by rubbing hands for 20 seconds with using water and soap.

3. Keep distance from the people around you. Must keep a distance of at least 1 meter. Get out of the house only to get more essential items or else stay at home.

4. While leaving the house, do apply a mask and keep a sanitizer together.

5. Do not touch your face, nose and eyes.

6. Keep away from eggs and meat. By doing this you will avoid infection with the corona virus.

7. Clean the mobile phone regularly.

8. Make a list of people who contact Corona in the event of infection or illness and share it with others. Avoid visiting sick people for the next time.

9. If you are ill yourself, avoid going out or going to places other than visiting a doctor.

10. Use of tissue in case of cold, cough and cold, try to sit less with the family.

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These are some most important precautions by Corona Infection...

But Do you know that??

             Many of us have broken the constitution of God, that is why this situation is happening to us today. If this continues like this, then nobody knows that which types of viruses will be revealed and how many.

       Before some I found something On Social Media...
        The book "Way of living" and "Gyan Ganga" which are currently going viral on social media, in which the constitution of God is well explained.

         The writer of this book, Saint Rampal Ji claims that the epidemic like corona virus, cancer also will be ends. 

         I have not and never seen any saints or gurus who are making such claims till today. There is definitely something in them. All of us must read this book once.