परमेश्वर कबीर जी, जिन्हें वर्तमान समाज में बहुत से व्यक्ति संत कबीर जी के नाम से भी जानते हैं और साथ ही यह भी मानते हैं कि कबीर जी को नीरू - नीमा नामक जुलाहे दंपत्ति ने काशी के लहरतारा तालाब पर प्राप्त किया था। परमेश्वर कबीर के प्रकट होने से लेकर वापस सतलोक गमन तक की सम्पूर्ण लीला में बहुत सारे रहस्य हैं। जिनसे अनजान व्यक्ति यह मानने को तैयार नहीं कि काशी के संत कबीर जी ही पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी हैं।
जी हां प्रकट होने का आशय सर्वोच्च स्थान से निम्न स्थान पर उतारना होता है, यह शब्द मुुख्यतः उन उत्तम आत्माओं के लिए प्रयुक्त होता है, जो धरती पर आकर सर्व संसार के लिए कुछ अद्भुत कार्य करते हैं। ऐसी आत्माओं को समाज के व्यक्ति परमात्मा या परमात्मा का भेजा हुआ दूत मानते हैं।
बहुत से व्यक्तियों के मन में ये प्रश्न होते हैं कि संत कबीर जी तो कलियुग में आए हैं, जो कि राम व कृष्ण के अवतार से बहुत बाद की घटना है तो आखिर कबीर जी पूर्ण परमात्मा कैसे हो सकते हैं, तो आइए जानते हैं उन्हीं की वाणी से उनका रहस्य...
"सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।
द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया।।"
द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया।।"
"चारों युगों में हम पुकारैं, कूक कहैं हम हेल रे।
हीरे मानिक मोती बरसें, ये जग चुगता ढेल रे।।"
उपरोक्त वाणी से सिद्ध है कि कबीर परमेश्वर ही अविनाशी परमात्मा है। यही अजरो-अमर है। यही परमात्मा चारों युगों में स्वयं अतिथि रूप में कुछ समय के लिए इस संसार में आकर अपना सतभक्ति मार्ग देते हैं। जिसके दौरान परमात्मा बहुत सी लीलाएं करते हैं। उपरोक्त वाणी में यह भी बताया गया है कि परमात्मा सतयुग में सतसुकृत के नाम से, त्रेतायुग में मुनींद्र नाम से, द्वापरयुग में करुणामय नाम से तथा कलियुग में कबीर परमेश्वर के नाम से आए हैं।
आइए आज हम जानते हैं कि कबीर परमात्मा ने कलियुग में प्रकट होकर ऐसी क्या लीला की, जिससे साबित होगा कि वही कबीर परमात्मा हैं।
कलयुग में परमेश्वर कबीर जी भारत के काशी शहर(वर्तमान वाराणसी) के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) को भोर(सूर्य निकलने से पहले का समय) के समय कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे। रोज की तरह आज भी नीरू, नीमा नामक पति-पत्नी लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। चूंकि उनकी कोई संतान नहीं थी तो नीमा रास्ते में भगवान शंकर से रोते हुए प्रार्थना कर रही थी कि, "हे भगवान! आप तो समर्थ हैं कम से कम हमें एक बालक ही दे दो।" ऐसे ही विलाप करते करते दोनों तालाब पर पहुंचे। बारी बारी स्नान करते करते हल्का उजाला सा हो गया, और नीरू के स्नान करते समय नीमा को कमल के फूल पर एक बालक सा दिखा तो नीमा ने ज़ोर से नीरू को आवाज़ दी कि कमल पर बालक है उसे उठा लो। देखने पर पता चला कि एक ऐसा मनमोहक बालक है, जिसने एक पैर अपने मुख में ले रखा था तथा दूसरे पैर को हिला रहा था। बालक(परमेश्वर कबीर जी) को लेकर नीरू तथा नीमा अपने घर पर आए। जिस भी नर व नारी ने नवजात शिशु रूप में परमेश्वर कबीर जी को देखा वह परमात्मा के एक मनमोहक रूप को देखता ही रह गया। बालक को देखने के पश्चात उसके चेहरे से दृष्टि हटाने को दिल नहीं करता, आत्मा अपने आप खिंची जाती है। इसके पश्चात काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरान शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। काजियों में से मुख्य काजी ने क़ुरान शरीफ़ पुस्तक को कही से खोला। उस पृष्ठ पर प्रथम पंक्ति में प्रथम नाम “कबीरन्” लिखा था। काजियों ने सोचा “कबीर” नाम का अर्थ बड़ा होता हैं। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखें थे अन्य लेख नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। इसके पश्चात परमेश्वर कबीर जी शिशु रूप में काजियों से बोलते हैं कि,"काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो।" काज़ी तो चले गए लेकिन परमात्मा का नाम कबीर ही रखा गया। इसके पश्चात नीमा जी ने बालक को जब दूध पिलाना चाहा तो बालक दूध ना पीता था। इसी प्रकार धीरे धीरे 25 दिन बीत गए। अब नीरू और नीमा बहुत परेशान हो गए। पुनः नीमा विलाप करने लगी और शंकर भगवान को याद करके बोलने लगी कि, "हे परमात्मा! अगर इस बालक को कुछ हुआ तो मैं भी मर जाऊंगी।" तभी भगवान शंकर जी एक ब्राह्मण का रूप बना कर नीरू की झोपड़ी के सामने आए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा, तो नीमा ने सर्वकथा बतायी। साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा कि, "बालक को मेरे पास लेकर आओ।" अब बालक का रूप धारण किए हुए परमेश्वर कबीर जी ने शंकर जी से कहा, " आप इन्हें कहो एक कुंवारी गाय लाऐं। आप उस कुंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुंवारी गाय का दूध पीऊंगा और उस दूध से मेरी परवरिश होगी।" शंकर जी ने नीमा नीरू से बिल्कुल यही बात कह दी। नीरू कुंवारी गाय तथा कुम्हार के घर से एक छोटा घड़ा भी ले आया। अब परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार शंकर जी ने उस कुंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा। तुरंत गाय के थन लम्बे हो गए तथा थनों से दूध की धार बह गई। अब जैसे ही वह घड़ा पात्र भर गया स्वयं ही थनों से दूध निकलना भी बंद हो गया। और उसी दूध से बालक कबीर परमेश्वर जी की परवरिश हुई।
परमात्मा सदैव ऐसी लीला करते हैं प्रमाण के लिए देखिए ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 जिसमें वर्णित है कि,
" मंत्र का प्रमाण :
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनव: शिशुम् सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
हिंदी अनुवाद :
"जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुआरी गाय से होता है।""
" मंत्र का प्रमाण :
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनव: शिशुम् सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
हिंदी अनुवाद :
"जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुआरी गाय से होता है।""
इस प्रकार की अन्य बहुत सी लीलाएं हैं जो परमात्मा के द्वारा इस काल लोक में किया जाता है। इन लीलाओं को विस्तार से जानने के लिए अवश्य देखिए संत रामपाल जी के अमृत प्रवचन निम्नलिखित समयानुसार निम्नलिखित चैनलों पर...
(1) सुबह 06:00 बजे से Nepal 1 TV पर
(2) दोपहर 02:00 बजे से Shraddha MH One पर
(3) शाम 07:30 बजे से Sadhna चैनल पर
(2) दोपहर 02:00 बजे से Shraddha MH One पर
(3) शाम 07:30 बजे से Sadhna चैनल पर
यह सारी लीला परमात्मा अपनी हंस आत्माओं को काल के जाल से छुड़ा कर सतलोक वापस ले जाने के लिए करते हैं। जबकि काल के जाल में हम स्वेच्छा से फंसे हैं और अब यहां कष्टमई जीवन व्यतीत करते हैं। जिससे बचाने के लिए परमात्मा सशरीर यहां आते हैं और अपने ज्ञान का प्रचार करते हैं। जिससे हम जीवन का मूल लक्ष्य समझ सकें और मोक्ष प्राप्त करके वापस अपने निज धम सतलोक को जा सकें।
आज के इस समय में सम्पूर्ण विश्व में सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण सतगुरु है जो कि कबीर परमेश्वर जी तक सभी आत्माओं को पहुंचा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़िए पुस्तक👉 https://www.jagatgururampalji.org/en/publications
यदि आप संत रामपाल जी का ज्ञान समझ चुके हैं और आप अगर नाम दीक्षा लेना चाहते हैं तो ये सुविधा आपको बिलकुल मुफ्त मिलेगी। सिर्फ घर बैठे आपको एक निःशुल्क नाम दीक्षा फॉर्म👉 http://bit.ly/NamDiksha भरना होगा।
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